लघु एवं कुटीर उद्योग के क्षेत्र में महिला उद्यमी की भुमिका

 

श्रीमति पदमा सोमनाथे1 एवं  श्रीमति कविता सिलवाल2

सहा. प्राघ्यापक (वाणिज्य), गुरुकुल महिला महाविधालय, रायपुर (छ.ग.)

*Corresponding Author E-mail: mkpremi397@gmail.com

 

संक्षेपिका

आज महिला उद्यमियों के विकास की आवश्यकता है क्योंकि वे प्रतिभाशाली एवं योग्य है और देश के विकास में सकारात्मक योगदान दे रहीं है।  उद्यम के क्षेत्र में महिला अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है - जैसे रितु कुमार भारतीय टेक्सटाईल की रानी के नाम से प्रसिद्ध है।  रितु बेरी ने फ्रेंच फैशन इंडस्ट्री में विशेष स्थान बनाया है।  भारतीय महिलाओं ने विभिन्न ब्रांड स्थापित कर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है जैसे बुटिक के क्षेत्र में विनिता जैन, शहनाज हर्बल की शहनाज हुसैन ने आज विश्व भर में पहचान बनाई है।  इसी के तहत् महिलायें ग्रामीण क्षेत्र के उद्यम में भी भागदारी कर रही है।‘‘

 

यह सर्वविदित है कि हमारे देश की आधी जनसंख्या महिलाओं की है, जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं के योगदान को स्वीकार किया गया है, महिलायें राष्ट्र की उन्नति एवं विकास में पुरूषों जितना ही महत्व रखती है, उन्होंने अपने आर्थिक स्तर पर महत्वपूर्ण योगदान देते हुये यह सिद्ध कर दिया है कि देश के विकास में पुरूष एवं महिलायें विकास रूपी गाड़ी के दो पहिये है।  विगत दशकों में कृषि, उद्योग, यातायात, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में तेजी से विकास हुआ, जिसमें महिलाओं ने स्वालम्बन और आत्मनिर्भरता दिखाते हुए राष्ट्र के विकास में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में सहभागी बनने लगी।

 

भारत में महिला उद्यमियों की ओर रूझान व राष्ट्रीय आय में उनका योगदान लगातार बढ़ता जा रहा है।  आधुनिक तकनीकि के प्रयोग, निवेश, निर्यात बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज करने, बड़ी मात्रा में रोजगार सृजन करना व संगठित क्षेत्र अन्य महिला उद्यमियों के लिये मार्ग प्रशस्त करने में महिला उद्यमियों की भूमिका अग्रणी रही है।

 

प्रत्येक महिला एक संभाव्य शक्ति है उनमें नेतृत्व व प्रबंधन क्षमता का अपार भण्डार है।  एक आकंलन के अनुसार भारत में महिला उद्यमों का हिस्सा कुल उद्यमों का दस प्रतिशत है और इसमें प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है अगले पाॅंच वर्ष के भीतर यह हिस्सा बीस प्रतिशत तक बढ़ सकता है ग्रामीण क्षेत्रों में नाबार्ड समर्थित स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से स्वयं का उद्यम स्थापित करने वाली महिलाओं से लेकर बड़े-बड़े उद्यम चलाने वाली महिला उद्यमियों की सफलताएं उल्लेखनीय है महिलाओं के बेहतर उद्यमी सिद्ध होने के पीछे उनके गुण जैसे स्थायित्व, सीखने की त्वरित प्रवृत्ति, परिर्वतनों को अंगीकृत करने की प्रवृत्ति, सकारात्मक दृष्टिकोण व स्वष्टवादिता जैसे कारण है।  लंदन स्थित औरोरा तथा न्यूजर्सी स्थित कैलीयर ने यू.के. तथा अमेरिका में महिला उद्यमियों के क्छ।  अध्ययन में पाया कि वे अत्यधिक विश्वासोत्पादक होती है उनमें निर्णयन तथा अत्यधिक जोखिम उठाने की क्षमता होती है।

 

महिलाओं के द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योग के क्षेत्र में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए देश के  ळक्च्  वृद्धि दर में निश्चित रूप से सराहनीय योगदान प्रदान किया है।

 

लघु एवं कुटीर उद्योग:-

पूॅंजी विनियोग की सीमा के आधार पर ही निर्धारित किया जा सकता है कि औद्योगिक इकाई ैैप् क्षेत्र में आती है, कि वृद्धि में, उसका निर्धारण निम्न आधार पर हाता है:-

(क) निर्माण उद्योग:

(1) एक सूक्ष्म उद्योग जहाॅं प्लाण्ट मशाीनरी में निवेश 25 लाख से अधिक नहीं होता है।

(2) एक लघु उद्योग जहाॅ प्लाण्ट एवं मशीनरी में निवेश 25 लाख से अधिक लेकिन 5 करोड़ से कम होता हो एवं एक मध्यम उद्योग जहां प्लांट एवं मशीनरी में निवेश 5 करोड़ से अधिक, लेकिन 10 करोड़ से कम होता है।

 

(ख) सेवा उद्योगः

(1) एक सूक्ष्म उद्योग, जहाॅं उपकरणों में निवेश 10 लाख से आगे नहीं बढ़ता है।

(2) एक लघु उद्योग, जहां उपकरणों में निवेश 10 लाख से अधिक, लेकिन 2 करोड़ से अधिक नहीं है

(3) एक मध्यम उद्योग, जहां उपकरणों में निवेश 2 करोड़ से अधिक, लेकिन 5 करोड़ से कम हो।

 

लघु उद्योगों में आधुनिक ढंग से उत्पादन कार्य होता है, सवेतन श्रमिकों की प्रधानता रहती है तथा पूॅजी निवेश भी होता है।

 

प् मबजवत  में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति में अपना बहुत महत्वपूर्ण अंशदान दिया है।  भारतीय अर्थव्यवस्था श्रम की आधिक्यता पर आधारित है जहां पर श्रम की उपलब्धता तीव्र दर से बढ़ रही है।  अतः रोजगार संभावनाओं की आवश्यकता अधिक है जिसकी पूर्ति ैैप् द्वारा होती है।  रोजगार के क्षेत्र में लगभग 80ः भाग की पूर्ति में ैैप् क्षेत्र की भूमिका है।  इससे यह विदित होता है कि देश के रोजगार निर्माण में इन उद्योगों का महत्वपूर्ण स्थान है।

 

महिलाओं का योगदान -

लघु उद्यागों में महिलाओं के योगदान की तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है -

1. संचालक के रूप में

2. प्रबंधक के रूप में

3. कर्मचारी के रूप में

 

भारत सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में म्हिलाओं द्वारा संचालित लघु एवं कुटीर उद्योगों की संख्या लगभग 1,063,721 है जिसमें 13.08ः केरल में, 12.20ः उद्यम तमिलनाडू में व 9.69ः कर्नाटक में है एवं महिलाओं द्वारा प्रबंधित इकाईया लगभग 9,95,141 है। जिसमें सर्वाधिक उद्यम केरल में है 13.82ः दूसरे स्थान पर तमिलनाडु में 13.09ःए  तीसरे स्थान पर कर्नाटक 10.17ः है, इस सर्वेक्षण से यह स्पष्ट है कि महिला साक्षरता व महिला उद्यमिता के मध्य प्रत्यक्ष संबंध क्योकि केरल में शत-प्रतिशत महिलायें साक्षर है।

 

आज विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के योगदान को अपेक्षाकृत विशेष पहचान मिल रही है, उद्योगों के श्रेत्रों में महिलाओं की भागीदारी व तरक्की के रास्ते आज बढ़ते जा रहे है।  ैैप् ैमबजवत  में लगभग 3317496 महिला कर्मचारी कार्यरत् है, जिसमें सर्वाधिक महिला कर्मचारी तमिलनाडु में कार्यरत् है तथा केरल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल राज्यों में भी तुलनात्मक रूप से महिला कर्मचारी सक्रिय है।

 

समस्याऐं:-  

लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास में महिलाओं का योगदान अत्यंत सराहनीय है, परंतु निम्न बाधायें महिलाओं के कार्य को इस क्षेत्र में अवरूद्ध करती हैं-

ऽ     सरकार द्वारा महिला उद्यमियों को लघु उद्योग हेतु ऋण की सुविधा दी जाती है जिसे महिला के नाम पर स्वीकृत तो करा दिया जाता है, परंतु उस ऋण की राशि का प्रयोग परिवार के पुरुष वर्ग द्वारा अपने कार्य हेतु किया जाता है, जिससे आप भी उद्यम के श्रेत्र में पुरुषों का वर्चस्व महिला उद्यमी की तुलना में अधिक है।

ऽ     उपरोक्त कारणों से आज भी केवल असंगठित श्रेत्रों में महिला उद्यमियों का योगदान ज्यादा है संगठित श्रेत्रों की अपेक्षा।

ऽ     पारिवारिक दायित्वों के निर्वाह के भार के कारण महिलायें उद्यम के श्रेत्र में सक्रिय योगदान नहीं दे पाती।

ऽ     अपने उत्पाद के विक्रय संर्वधन की समस्या आती है जिससे उनका उद्यम श्रेत्र संकुचित हो जाता है।

ऽ     तकनीकि ज्ञान संबंधी समस्या व प्रशिक्षण की कमी भी उद्यमिता में बाधा का प्रमुख कारण रहा है।

 

भावी युक्ति -      

पारंपरिक रूप से महिला उद्यमियों को स्वयं का उद्यम स्थापित करने, उसे कुशलता के साथ संचालित करने, उत्पादित माल के विक्रय करने और उस पर अपना स्वामित्व बनाये रखने के लिये अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिसके निराकरण की भावी युक्ति व सुझाव निम्न है:-

ऽ     प्रिवार से प्रेरणा व सहायता।

ऽ     ऋण प्राप्त करने, ऋणदाता निकाय के आवश्यकताओं तथा सरकारी विकास व कल्याण कार्यक्रमों की जानकारी प्रदान करना।

ऽ     महिला उद्यमी के नाम पर स्वीकृत ऋण राशि का उपयोग, सही दिशा में हो रहा है या नहीं इसकी जांच कर, त्रुटि की दशा में दंड का प्रावधान किया जाये।

ऽ     ग्रामीण व अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में महिला उद्यमिता विकास हेतु महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनवाना व उन्हें मजबूती प्रदान करना।

ऽ     ग्रामीण क्षेत्रों में शिविर लगाकर नवीन महिला उद्यमियों को तकनीकि व उद्यमी प्रशिक्षण प्रदान करना।

 

निष्कर्ष -

उच्च शिक्षित, प्रशिक्षित तकनीकी दृष्टि से मजबूत और पेशेवर दक्ष महिलाओं को स्वयं का उद्यम स्थापित करने तथा संचालित करने लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।  तथा नवीन महिला उद्यमियों को वित्त सुविधा एवं तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान कर उनकी अविदोहित निपुणता का उपयोग महिला उद्यम के क्षेत्र में करना चाहिए।  महिला उद्यमिता इस बात का प्रमाण है कि जिन क्षेत्रों में अब तक पुरूषों का वर्चस्व था महिलाओं ने भी अपनी प्रतिभा का उपयोग करते हुये भागीदारी प्रदान की है। महिलाओें का स्वयं व्यवसायिक क्षेत्र में उनकी प्रगति निश्चित रूप से देश के लिये आर्थिक एवं सामाजिक रूप में  लाभकारी सिद्ध होगी।

 

स्त्रोत:-

1.       ग्यारहवी पंचवर्षीय योजना (2007-12) योजना अयोग खण्ड दो पृष्ठ 229

2.       Ministry of Micro, Small & Medium Enterprises (MSME)

3.       Times of India (Mumbai)

4.       उद्यमीकरण के मूल सिद्धान्त - रेणु अरोरा (2010-11)

 

 

 

Received on 14.10.2013       Modified on 15.11.2013

Accepted on 15.12.2013      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Ad. Social Sciences 1(2): Oct. - Dec. 2013; Page  63-65